क्रियार्थोपपद-
(अष्टाध्यायी २.३.१४ ) इत्यादिना चतुर्थी। अनुमतोऽप्यनुज्ञातः किम् ? हि यस्मात्ते तव सर्वेषामाश्रमाणां ब्रह्मचर्य-वनप्रस्थ यतीनामुपकारे क्षमं शक्तम्। क्षमं शक्ते हिते त्रिषु
इत्यमरः (अमरकोशः ३.३.१५१ ) । द्वितीयमाश्रमं गार्हस्थ्यं संक्रमितुं प्राप्तुमयं कालः। विद्याग्रहणानन्तर्यात्तस्येति भावः। कालसमयवेलासु तुमुन्
(अष्टाध्यायी ३.३.१६४ ) इति तुमुन्। सर्वोपकारक्षममित्यत्र मनुः(३।७७)-यथा मातरमाश्रित्य सर्वे जीवन्ति जन्तवः। वर्तन्ते गृहीणस्तद्वदाश्रित्येतर आश्रमाः ॥
इति ॥
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अ | पि | प्र | स | न्ने | न | म | ह | र्षि | णा | त्वं |
स | म्य | ग्वि | नी | या | नु | म | तो | गृ | हा | य |
का | लो | ह्य | यं | सं | क्र | मि | तुं | द्वि | ती | यं |
स | र्वो | प | का | र | क्ष | म | मा | श्र | मं | ते |