वा क्यषः
(अष्टाध्यायी १.३.९० ) इत्यात्मनेपदम्। दक्षिणायने तेजोमान्द्यादिति भावः। तस्यामेव दिशि। पाण्ड्याः पाण्डूनां जनपदानां राजानः पाण्ड्याः। पाण्डोर्ड्यण्वक्तव्यः
(वा.२६७१)। रघोः प्रतापं न विषेहिरे न सोढवन्तः। सूर्यविजयिनोऽपि विजितवानिति नायकस्य महानुत्कर्षो गम्यते ॥
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दि | शि | म | न्दा | य | ते | ते | जो |
द | क्षि | ण | स्यां | र | वे | र | पि |
त | स्या | मे | व | र | घोः | पा | ण्ड्याः |
प्र | ता | पं | न | वि | षे | हि | रे |