ग्रीवाभ्योऽण्च
(अष्टाध्यायी ४.३.५७ ) इत्यण्प्रत्ययः। नास्रसन्न स्रस्तमभूत्। द्युद्भ्यो लुङि
(अष्टाध्यायी १.३.९१ ) इति परस्मैपदम्। पुषादित्वादङ्। अनिदिताम्-
(अष्टाध्यायी ६.४.२४ ) इति नकारलोपः॥
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भो | गि | वे | ष्ट | न | मा | र्गे | षु |
च | न्द | ना | नां | स | म | र्पि | तम् |
ना | स्र | स | त्क | रि | णां | ग्रै | वं |
त्रि | प | दी | च्छे | दि | ना | म | पि |