अलंकृञ-
(अष्टाध्यायी ३.२.१३६ ) इत्यादिनेष्णुच्प्रत्ययः। फलरेणवः फलरजांसि तुल्यगन्धिषु समानगन्धिषु। सर्वधनीतिवदिन्नन्ताद्बहुव्रीहिः। मत्तेभानां कटेषु ससञ्जुः सक्ताः। गजगण्डकटी कटौ
इति कोषः ॥
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स | स | ञ्जु | र | श्व | क्षु | ण्णा | ना |
मे | ला | ना | मु | त्प | ति | ष्ण | वः |
तु | ल्य | ग | न्धि | षु | म | त्ते | भ |
क | टे | षु | फ | ल | रे | ण | वः |