द्व्यञ्मगधकलिङ्ग-
(अष्टाध्यायी ४.१.१७० ) इत्यादिनाण्प्रत्ययः। अस्त्त्रैरायुधैस्तं रघुम्। पक्षाणां धेद उद्यतमुद्युक्तं शक्रं शिलावर्षी पर्वत इव। प्रतिजग्राह प्रत्यभियुक्तवान् ॥
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प्र | ति | ज | ग्रा | ह | का | लि | ङ्ग |
स्त | म | स्त्त्रै | र्ग | ज | सा | ध | नः |
प | क्ष | च्छे | दो | द्य | तं | श | क्रं |
शि | ला | व | र्षी | व | प | र्व | तः |