सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
स इति॥ स रघुर्महेन्द्रस्य कुलपर्वतविशेषस्य। महेन्द्रो मलयः सह्यः शक्तिमानृक्षपर्वतः। विन्ध्यश्च पारियात्रश्च सप्तैते कुलपर्वताः।
इति विष्णुपुराणात्। मूर्ध्नि तीक्ष्णं दुःसहं प्रतापम्। यन्ता सारथिर्गम्भीरवेदिनो द्विरदस्य गजविशेषस्य मूर्ध्नि तीक्ष्णं निशितमङ्कुशमिव। न्यवेशयन्निक्षिप्तवान्। त्वग्भेदाच्छोणितस्रावान्मांसस्य क्रथनादपि। आत्मानं यो न जानाति स स्याद्गम्भीरवेदिता॥
इति राजपुत्रीये। चिरकालेन यो वेत्ति शिक्षां परिचितामपि । गम्भीरवेदी विज्ञेयः स गजो गजवेदिभिः॥
इति मृगचर्मीये ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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स | प्र | ता | पं | म | हे | न्द्र | स्य |
मू | र्ध्नि | ती | क्ष्णं | न्य | वे | श | यत् |
अ | ङ्कु | शं | द्वि | र | द | स्ये | व |
य | न्ता | ग | म्भी | र | वे | दि | नः |