सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
स इति॥ महतीं सेनां पूर्वसागरगामिनीं कर्षन् स रघुः। हरस्य जटाभ्यो भ्रष्टां गङ्गां कर्षन्। सापि पूर्वसागरगामिनी। भगीरथ इव। बभौ। भगीरथो नाम कश्चित्कपिलदग्धानां सागराणां नप्ता तत्पावनाय हरकिरीटाद्गङ्गा प्रवर्तयिता राजा। यत्संबन्धाद्गङ्गा च भागीरथीति गीयते ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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स | से | नां | म | ह | तीं | क | र्ष |
न्पू | र्व | सा | ग | र | गा | मि | नीम् |
ब | भौ | ह | र | ज | टा | भ्र | ष्टां |
ग | ङ्गा | मि | व | भ | गी | र | थः |