समानौ मरुधान्वानौ
इत्यमरः (अमरकोशः १.१०.१० ) । उदम्भांस्युद्भूतजलानि चकार। नाव्या नौभिस्तार्या नदीः। नाव्यं त्रिलिङ्गं नौतार्ये
इत्यमरः (अमरकोशः १.१०.१० ) । aनौवयोधर्मविषमूल-
(अष्टाध्यायी ४.४.९१ ) इत्यादिना यत्प्रत्ययः। सुप्रतराः सुखेन तार्याश्चकार। विपिनान्यरण्यानि। अटव्यरण्यं विपिनम्
इत्यमरः (अमरकोशः १.१०.१० ) । प्रकाशानि निर्वृक्षाणि चकार। शक्त्युत्कर्षात्तस्यागम्यं किमपि नासीदिति भावः॥
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म | रु | पृ | ष्ठा | न्यु | द | म्भां | सि |
ना | व्याः | सु | प्र | त | रा | न | दीः |
वि | पि | ना | नि | प्र | का | शा | नि |
श | क्ति | म | त्त्वा | ञ्च | का | र | सः |