संयोगादेरातो धातोर्यण्वतः
(अष्टाध्यायी ८.४.४३ ) इति श्यतेर्निष्ठातस्य नत्वम्। शरच्छरदृतुस्तं रघुं शक्तेरुत्साहृशक्तेः प्रथमं प्राग्यात्रायै दण्डयात्रायै चोदयामास प्रेरयामास। प्रभुमन्त्त्रशक्तिसंपन्नस्य शरत् स्वयमुत्साहमुत्पादयामासेत्यर्थः॥
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स | रि | तः | कु | र्व | ती | गा | धाः |
प | थ | श्चा | श्या | न | क | र्द | मान् |
या | त्रा | यै | चो | द | या | मा | स |
तं | श | क्तेः | प्र | थ | मं | श | रत् |