सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
काममिति॥ विशाले तस्य रघोर्लोचने कामं कर्णान्तयोर्विश्रान्ते कर्णप्रान्तगते। चक्षुष्मत्ता तु। चक्षुःफलं त्वित्यर्थः। सूक्ष्मान् कार्यार्थान्कर्तव्यार्थान् दर्शयति प्रकाशयतीति सूक्ष्मकार्यार्थदर्शिना शास्त्त्रेणैव। शास्त्त्रं दृष्टिर्विवेकिनामिति भावः॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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का | मं | क | र्णा | न्त | वि | श्रा | न्ते |
वि | शा | ले | त | स्य | लो | च | ने |
च | क्षु | ष्म | त्ता | तु | शा | स्त्त्रे | ण |
सू | क्ष्म | का | र्या | र्थ | द | र्शि | ना |