सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
यथेति॥ यथा चन्दयत्याह्लादयतीति चन्द्र इन्दुः। चदिधातोरौणादिकोरप्रत्ययः। प्रह्लादनादाह्लादकरणादन्वर्थोऽनुगतार्थनामकोऽभूत्। यथा च तपतीति तपनः सूर्यः। नन्द्यादित्वाल्ल्युप्रत्ययः। प्रतापात् संतापजननादन्वर्थः। तथैव स राजा प्रकृतिरञ्जनादन्वर्थः सार्थकराजशब्दोऽभूत्। यद्यपि राज
शब्दो राजतेर्दीप्त्यर्थात्कनिन्प्रत्ययान्तो न तु रञ्जेस्तथापि धातूनामनेकार्थत्वाद्रञअजनाद्राजेत्युक्तं कविना ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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य | था | प्र | ह्ला | द | ना | ञ्च | न्द्रः |
प्र | ता | पा | त्त | प | नो | य | था |
त | थै | व | सो | ऽभू | द | न्व | र्थो |
रा | जा | प्र | कृ | ति | र | ञ्ज | नात् |