सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
लब्धेति॥ अथ लब्धस्य राज्यस्य प्रशमनेन परिपन्थिनामनुरञ्जनप्रतीकाराभ्यां स्थिरीकरणेन स्वस्थं समाहितचित्तमेनं रघुं पङ्कजलक्षणा पद्मचिह्ना। श्रियोऽपि विशेषणमेतत्। शरत्। द्वितीया पार्थिवश्री राजलक्ष्मीरिव। समुपस्थिता प्राप्ता। रक्षा पौरजनस्य देशनगरग्रामेषु गुप्तिस्तथा योधानामपि संग्रहोऽपि तुलया मानव्यवस्थापनम्। साम्यं लिङ्गिषु दानवृत्तिकरणं त्यागः समानेऽर्चनं कार्याण्येव महीभुजां प्रशमनान्येतानि राज्ये नवे॥
इति॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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ल | ब्ध | प्र | श | म | न | स्व | स्थ |
म | थै | नं | स | मु | प | स्ति | ता |
पा | र्थि | व | श्री | र्दि | ती | ये | व |
श | र | त्प | ङ्क | ज | ल | क्ष | णा |