सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
पञ्चानामिति॥ पृथिव्यादीनां पञ्चानां भूतानामपि गुणा गन्धादय उत्कर्षमतिशयं पुपुषुः। अत्रोत्प्रेक्षते-तस्मिन् रघौ नाम नवे महीपाले सति सर्वं क्स्तुजातं नवमिवाभवत्। तदेव भूतजातमिदानीमपूर्वगुणयोगादपूर्वमिवाभवदिति भावः ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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प | ञ्जा | ना | म | पि | भू | ता | ना |
मु | त्क | र्षं | पु | पु | षु | र्गु | णाः |
न | वे | त | स्मि | न्म | ही | पा | ले |
स | र्वं | न | व | मि | वा | भ | वत् |