अन्यारादितरर्ते-
(अष्टाध्यायी २.३.२९ ) इति पञ्चमी। किमिच्छसीति स्फुटं वासव आह। तुरंगमादन्यददेयं नास्तीति भावः॥
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अ | स | ङ्ग | म | द्रि | ष्व | पि | सा | र | व | त्त | या |
न | मे | त्व | द | न्ये | न | वि | सो | ढ | मा | यु | धम् |
अ | वे | हि | मां | प्री | त | मृ | ते | तु | रं | ग | मा |
त्कि | मि | च्छ | सी | ति | स्फु | ट | मा | ह | वा | स | वः |
ज | त | ज | र |