तुमर्थाञ्च भाववचनात्
(अष्टाध्यायी २.३.१५ ) इति चतुर्थीं। कथं प्रवर्तसे? ॥
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म | खां | श | भा | जां | प्र | थ | मो | म | नी | षि | भि |
स्त्व | मे | व | दे | वे | न्द्र | स | दा | नि | ग | द्य | से |
अ | ज | स्र | दी | क्षा | प्र | य | त | स्य | म | द्गु | रोः |
क्रि | या | वि | था | ता | य | क | थं | प्र | व | र्त | से |
ज | त | ज | र |