सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
अथेति॥ गर्भाष्टमेऽब्दे कुर्वीत ब्राह्मणस्योपनायनम्। गर्भादेकादशे राज्ञो गर्भाञ्च द्वादशे विशः॥
(२।३६) इति मनुस्मरणात्। अथ गर्भैकादशेऽब्दे विधिवदुपनीतं गुरुप्रियमेनं रघुं विपश्चितो विद्वांसो गुरवो विनिन्युः शिक्षितवन्तः। ते गुरवोऽत्रास्मिन्रघौ अवन्ध्ययत्नाश्च बभूवुः। तथा हि-क्रिया शिक्षा। क्रिया तु निष्कृतौ शिक्षाचिकित्सोपायकर्मसु
इति यादवः। वस्तुनि पात्रभूत उपहिता प्रयुक्ता प्रसीदति फलति। क्रिया हि द्रव्यं विनयति नाद्रव्यम्
इति कौटिल्यः ॥
छन्दः
वंशस्थम् [१२: जतजर]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ |
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अ | थो | प | नी | तं | वि | धि | व | द्वि | प | श्चि | तो |
वि | नि | न्यु | रे | नं | गु | र | वो | गु | रु | प्रि | यम् |
अ | व | न्ध्य | य | त्ना | श्च | ब | भू | वु | र | त्र | ते |
क्रि | या | हि | व | स्तू | प | हि | ता | प्र | सी | द | ति |
ज | त | ज | र |