सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
स इति॥ चूडाकर्म द्विजातीनां सर्वेषामेव धर्मतः। प्रथमेऽब्दे तृतीये वा कर्तव्यं श्रुतिचोदनात्॥
(२।३४) इति मनुस्मरणात्तृतीये वर्षे वृत्तचूलो निष्पन्नचूडाकर्मा सन्। डलयोरभेदः। स रघुः। प्राप्ते तु पञ्चमे वर्षे विद्यारम्भं च कारयेत्
इति वचनात्पञ्चमे वर्षे चलकाकपक्षकैश्चञ्चलशिखण्डकैः। बालानां तु शिखा प्रोक्ता काकपक्षः शिखण्डकः
इति हलायुधः। सवयोभिः स्निग्धैः। वयस्यः स्निग्धः सवयाः
इत्यमरः (अमरकोशः २.८.१२ ) । अमात्यपुत्रैरन्वितः सन्। लिपेः पञ्चाशद्वर्णात्मिकाया मातृकाया यथावद्ग्रहणेन सम्यग्बोधेनोपायभूतेन वाङ्मयं शब्दजातम्। नद्यामुखं द्वारम्। मुखं तु वदने मुख्यारम्भे द्वाराभ्युपाययोः
इति यादवः। तेन कश्चिन्मकरादिः समुद्रमिव। आविशत् प्रविष्टः। ज्ञातवानित्यर्थः॥
छन्दः
वंशस्थम् [१२: जतजर]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ |
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स | वृ | त्त | चू | ल | श्च | ल | का | क | प | क्ष | कै |
र | मा | त्य | पु | त्रैः | स | व | यो | भि | र | न्वि | तः |
लि | पे | र्य | था | व | द्ग्र | ह | णे | न | वा | ङ्म | यं |
न | दी | मु | खे | ने | व | स | मु | द्र | मा | वि | शत् |
ज | त | ज | र |