सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
अमंस्तेति॥ स्थितेरभेत्ता मर्यादापालकः स नृपः परार्ध्यजन्मनोत्कृष्टजन्मनाऽनेन रघुणाऽन्वयं वंशम्। प्रजानां पतिर्ब्रह्मा। गुणाः स्त्त्वादयः। तेष्वग्र्येण मुख्येन सत्त्वेन वर्तते व्याप्रियत इति गुणाग्र्यवर्ती। तेन स्वस्य मूर्तिभेदेनावतारविशेषेण विष्णुनाऽऽत्मनः सर्गं सृष्टिमिव। स्थितिमन्तं प्रतिष्ठावन्तममंस्त मन्यते स्म। मन्यतेरनुदात्तत्वादिट्प्रतिषेधः। अत्रोपमानोपमेययोरितरेतरविशेषणानीतरेतरत्र योज्यानि। तत्र रघुपक्षे, - गुणा विद्याविनयादयः। गुणोऽप्रधाने रूपादौ मौर्व्या सूदे वृकोदरे। स्तम्बे सत्त्वादिसंध्यादिविद्यादिहरितादिषु॥
इति विश्वः। शेषं सुगमम् ॥
छन्दः
वंशस्थम् [१२: जतजर]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ |
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अ | मं | स्त | चा | ने | न | प | रा | र्ध्य | ज | न्म | ना |
स्थि | ते | र | भे | त्ता | स्थि | ति | म | न्त | म | न्व | यम् |
स्व | मू | र्ति | भे | दे | न | गु | णा | ग्र्य | व | र्ति | ना |
प | तिः | प्र | जा | ना | मि | व | स | र्ग | मा | त्म | नः |
ज | त | ज | र |