सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
शरीरेति॥ शरीरस्य सादात् काश्यादसमग्रभूषणा परिमिताभरणा लोध्रपुष्पवत् पाण्डुना मुखेनोपलक्षिता सा सुदक्षिणा। विचेया मृग्यास्तारका यस्यां सा तथोक्ता। विरलनक्षत्रेत्यर्थः। तनुप्रकाशेनाल्पकान्तिना शशिनोपलक्षितेषदसमाप्तप्रभाता प्रभातकल्पा। प्रभातादीषदूनेत्यर्थः। तसिलादिष्वा कृत्वसुचः
(अष्टाध्यायी ६.३.३५ ) इति प्रभात
शब्दस्य पुंवद्भावः। शर्वरी रात्रिरिव। अलक्ष्यत। शरीरसादादिगर्भलक्षणमाह वाग्भटः(अ.हृ.शा१।५०)-क्षामता गरिमा कुक्षेमूर्च्छा छर्दिररोचकम्। जृम्भा प्रसेकः सदनं रोमराज्याः प्रकाशनम्॥
इति ॥
छन्दः
वंशस्थम् [१२: जतजर]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ | १२ |
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श | री | र | सा | दा | द | स | म | ग्र | भू | ष | णा |
मु | खे | न | सा | ल | क्ष्य | त | लो | ध्र | पा | ण्डु | ना |
त | नु | प्र | का | शे | न | वि | चे | य | ता | र | का |
प्र | भा | त | क | ल्पा | श | शि | ने | व | श | र्व | री |
ज | त | ज | र |