सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
तमिति॥ अदर्शनेन प्रवासनिमित्तेनाहितौत्सुक्यं जनितदर्शनोत्कण्ठम्। प्रजार्थेन संतानार्थेन व्रतेन नियमेन कर्शितं कृशीकृतमङ्गं यस्य तम्। नवोदयं नवाभ्युदयं प्रजास्तृप्तिमनाप्नुवद्भिरतिगृध्नुभिर्नेत्रैः। ओषधीनां नाथं सोममिव। तं राजानं पपुः । अत्यास्थया ददृशुरित्यर्थः। चन्द्रपक्षे, -अदर्शनं कलाक्षयनिमित्तम्। प्रजार्थे लोकहितार्थम्। व्रतं देवताभ्यः कलादाननियमः-तं च सोमं पपुर्देवाः पर्यायेणानुपूर्वशः
इति व्यासः। उदय आविर्भावः । अन्यत्समानम्॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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त | मा | हि | तौ | त्सु | क्य | म | द | र्श | ने | न |
प्र | जाः | प्र | जा | र्थ | व्र | त | क | र्शि | ता | ङ्गम् |
ने | त्रैः | प | पु | स्तृ | प्ति | म | ना | प्नु | व | द्भि |
र्न | वो | द | यं | ना | थ | मि | वौ | ष | धी | नाम् |