सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
श्रोत्रेति॥ धर्मपत्नीसहितः सहिष्णुर्व्रतादिदुःखसहनशीलः स नृपः श्रोत्राभिरामध्वनिना कर्णाह्लादकरस्वनेनानुद्धातः पाषाणादि प्रति घातरहितः। अत एव सुखयतीति सुखः, तेन रथेन। स्वेन पूर्णेन सफलेन मनोरथेनेव। मार्गमध्वानं ययौ। मनोरथपक्षे, -ध्वनिः श्रुतिः। अनुद्धातः प्रतिबन्धनिवृत्तिः॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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श्रो | त्रा | भि | रा | म | ध्व | नि | ना | र | थे | न |
स | ध | र्म | प | त्नी | स | हि | तः | स | हि | ष्णुः |
य | या | व | नु | द्धा | त | सु | खे | न | मा | र्गं |
स्वे | ने | व | पू | र्णे | न | म | नो | र | थे | न |