सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
स इति॥ न्यस्तानि परिहृतानि चिह्नानि छत्रचामरादीनि यस्यास्तां तथाभूतामपि तेजोविशेषेण प्रभावातिशयेन। अनुमितां सर्वथा राजैवायं भवेदित्यूहितां राजलक्ष्मीं दधानः स राजा। अनाविष्कृतदानराजिर्वहिरप्रकटितमदरेखः। अन्तर्गता मदावस्था यस्य सोऽन्तर्मदावस्थः। तथाभूतो द्विपेन्द्र इव। आसीत्॥
छन्दः
इन्द्रवज्रा [११: ततजगग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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स | न्य | स्त | चि | ह्ना | म | पि | रा | ज | ल | क्ष्मीं |
ते | जो | वि | शे | षा | नु | मि | तां | त | धा | नः |
आ | सी | द | ना | वि | ष्कृ | त | दा | न | रा | जि |
र | न्त | र्म | दा | व | स्थ | इ | व | द्वि | पे | न्द्रः |
त | त | ज | ग | ग |