वत्सांसाभ्यां कामबले
(अष्टाध्यायी ५.२.९८ ) इति लच्प्रत्ययः। वसिष्ठेन कृताभ्यनुज्ञः कृतानुमतिः स राजा वत्सस्य हुतस्य चावशेषं पीतहुतावशिष्टं नन्दिन्याः स्तन्यं क्षीरम्। शुभ्रं मूर्तं परिच्छिन्नं यश इव। अतितृष्णः सन्पपौ ॥
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स | न | न्दि | नी | स्त | न्य | म | नि | न्दि | ता | त्मा |
स | द्व | त्स | लो | व | त्स | हु | ता | व | शे | षम् |
प | पौ | व | सि | ष्ठे | न | कृ | ता | भ्य | नु | ज्ञः |
शु | भ्रं | य | शो | मू | र्त | मि | वा | ति | तृ | ष्णः |