सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
तस्या इति॥ प्रसन्नेन्दुरिव मुखं यस्य स नृपाणां गुरुर्दिलीपः प्रहर्षचिह्नैर्मुखरागादिभिरनुमितमभ्यूहितं तस्या धेनोः प्रसादमनुग्रहं प्रहर्षचिह्नैरेव ज्ञातत्वात्पुनरुक्तयेव वाचा गुरवे निवेद्य विज्ञाप्य पश्चात्प्रियायै शशंस । कथितस्यैव कथनं पुनरुक्तिः, न चेह तदस्ति। किंतु चिह्नैः कथितप्रायत्वात्पुनरुक्तयेव स्थितयेवेत्युत्प्रेक्षा ॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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त | स्याः | प्र | स | न्ने | न्दु | मु | खः | प्र | सा | दं |
गु | रु | र्नृ | पा | णां | गु | र | वे | नि | वे | द्य |
प्र | ह | र्ष | चि | ह्ना | नु | मि | तं | प्रि | या | यै |
श | शं | स | वा | चा | पु | न | रु | क्त | ये | व |