शरारुर्घातुको हिंस्रः
इत्यमरः (अमरकोशः ३.१.२८ ) । नमिकम्पि-
(अष्टाध्यायी ३.१.१६७ ) इत्यादिना रप्रत्ययः। किमुत सुष्ठु, न प्रभव इति योज्यम्। बलवत्सुष्टु किमुत स्वत्यतीव च निर्भरे
इत्यमरः (अमरकोशः ३.१.२८ ) ॥
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तं | वि | स्मि | तं | धे | नु | रु | वा | च | सा | धो |
मा | यां | म | यो | द्भा | व्य | प | री | क्षि | तो | ऽसि |
ऋ | षि | प्र | भा | वा | न्म | यि | ना | न्त | को | ऽपि |
प्र | भुः | प्र | ह | र्तुं | कि | मु | ता | न्य | हिं | स्राः |