क्रियाग्रहणमपि कर्तव्यम्
इति चतुर्थी। वरं देवेभ्यो वरणीयमर्थम्। देवाद्धृते वरः श्रेष्ठे त्रिषु क्लीबं मनाक्प्रिये
इत्यमरः। वृणीष्व स्वीकुरु। तथा हि-मां केवलानां पयसां प्रसूतिं कारणं नावेहि न विद्धिः। किंतु प्रसन्नां माम्। कामान्दोग्धीति कामदुघा। तामवेहि। दुहः कब्थश्च
(अष्टाध्यायी ३.२.७० ) इति कप्प्रत्ययः ॥
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प्री | ता | स्मि | ते | पु | त्र | व | रं | वृ | णी | ष्व |
न | के | व | ला | नां | प | य | सां | प्र | सू | ति |
म | वे | हि | मां | का | म | दु | घां | प्र | स | न्नाम् |