उपमानादाचारे
(अष्टाध्यायी ३.१.१० ) इति क्यच्। ततः शानच्। उत्थितमुत्पन्नम्, हे वत्स! उत्तिष्ठ
इति वचो निशम्य श्रुत्वा। उत्थितः सन्। अस्तेः शतृप्रत्ययः। अग्रतोऽग्रे प्रस्रवः क्षीरस्रावोऽस्ति यस्याः सा तां प्रस्रविणीं गां स्वां जननीमिव ददर्श। सिंहं न ददर्श ॥
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उ | त्ति | ष्ठ | व | त्से | त्य | मृ | ता | य | मा | नं |
व | चो | नि | श | म्यो | त्थि | त | मु | त्थि | तः | सन् |
द | द | र्श | रा | जा | ज | न | नी | मि | व | स्वां |
गा | म | ग्र | तः | प्र | स्र | वि | णीं | न | सिं | हम् |