स्यादवाङप्यधोमुखः
इत्यमरः (अमरकोशः ३.१.३३ ) । प्रजानां पालयितू राज्ञ उपर्युपरिष्टात्। उपर्युपरिष्टात्
(अष्टाध्यायी ५.३.३१ ) इति निपातः। विद्याधराणां देवयोनिविशेषणां हस्तैर्मुक्ता पुष्पवृष्टिः पपात ॥
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त | स्मि | न्क्ष | णे | पा | ल | यि | तुः | प्र | जा | ना |
मु | त्प | श्य | तः | सिं | ह | नि | पा | त | मु | ग्रम् |
अ | वा | ङ्मु | ख | स्यो | प | रि | पु | ष्प | वृ | ष्टिः |
प | पा | त | वि | द्या | ध | र | ह | स्त | मु | क्ता |