त्यागो वितरणं दानमुत्सर्जनविसर्जने। विश्राणनं वितरणम्
इत्यमरः (अमरकोशः २.७.३१ ) । कथं नु शक्यः? न शक्य इत्यर्थः। अत्र हेतुमाह-इमां गां सुरभेः कामधेनोः। पञ्चमी विभक्ते
(अष्टाध्यायी २.३.४२ ) इति पञ्चमी। अनूनामन्यूनामवेहि जानीहि। तर्हि कथमस्याः परिभवोऽभूदित्याह-रुद्रौजसेति। अस्यां गवि त्वया कर्त्रा प्रहृतं तु प्रहारस्तु। नपुंसके भावे क्तः। रुद्रौजसेश्वरसामर्थ्येन। न तु त्वयेत्यर्थः। सप्तम्यधिकरणे च
(अष्टाध्यायी २.३.३६ ) इति सप्तमी॥
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क | थं | नु | श | क्यो | ऽनु | न | यो | म | ह | र्षे |
र्वि | श्रा | ण | ना | ञ्चा | न्य | प | य | स्वि | नी | नाम् |
इ | मा | म | नू | नां | सु | र | भे | र | वे | हि |
रु | द्रौ | ज | सा | तु | प्र | हृ | तं | त्व | या | ऽस्याम् |