कृपा दयानुकम्पा स्यात्
इत्यमरः (अमरकोशः १.७.१९ ) । कृपैव वर्तते चेदित्यर्थः। तर्हि त्वदन्ते तव नाशे सति, इयमेका गौः। स्वस्ति क्षेममस्या अस्तीति स्वस्तिमती। भवेत्, जीवेदित्यर्थथः। स्वस्त्याशीःक्षेमपुण्यादौ
इत्यमरः (अमरकोशः १.७.१९ ) । हे प्रजानाथ! जीवन् पुनः पितेव प्रजा उपप्लवेभ्यो विपद्भ्यः शश्वत् सदा ।पुनः सदार्थयोः शश्वत्
इत्यमरः (अमरकोशः १.७.१९ ) । पासि रक्षसि। स्वप्राणव्ययेनैकधेनुरक्षणाद्वरं जीवितेनैव शश्वदखिलजगत्त्राणमित्यर्थः॥
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रे | का | भ | वे | त्स्व | स्ति | म | ती | त्व | द | न्ते |
जी | व | न्पु | नः | श | श्व | दु | प | प्ल | वे | भ्यः |
प्र | जाः | प्र | जा | ना | थ | पि | ते | व | पा | सि |