सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
इति प्रगल्भं पुरुषाणामधिराजो नृप इति प्रगल्भं मृगाधिराजस्य वचोनिशम्य श्रुत्वा गिरिशस्येश्वरस्य प्रभावात्प्रत्याहतास्त्त्रः` कुण्ठितास्त्त्रः सन् आत्मनि विषयेऽववज्ञामपमानं शिथिलीचकार। तत्याजेत्यर्थः। अवज्ञातोऽहमिति निर्वेदं न प्रापेत्यर्थः। समानेषु हि क्षत्रियाणामभिमानः न सर्वेश्वरं प्रतीति भावः ॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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इ | ति | प्र | ग | ल्भं | पु | रु | षा | धि | रा | जो |
मृ | गा | धि | रा | ज | स्य | व | चो | नि | श | म्य |
प्र | त्या | ह | ता | स्त्त्रो | गि | रि | श | प्र | भा | वा |
दा | त्म | न्य | व | ज्ञां | शि | थि | ली | च | का | र |