सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
कैलासेति॥ कैलास इव गौरः शुभ्रस्तम्। चामीकरं च शुभ्रं च गौरमाहुर्मनीषिणः
इति शाश्वतः। वृषं वृषभम्, आरुरुक्षोरारोढुमिच्छोः। स्वस्योपरि पदं निक्षिप्य वृषमारोहतीत्यर्थः। अष्टौ मूर्तयो यस्य स तस्याष्टमूर्तेः शिवस्य पादार्पणं पादन्त्यासस्तदेवानुग्रहः प्रसादस्तेन पूतं पृष्ठं यस्य तं तथोक्तं निकुम्भमित्रं कुम्भोदरं नाम किंकरं मामवेहि विद्धि। पृथिवी सलिलं तेजौ वायुराकाशमेव च । सूर्यां चन्द्रमसौ मोमयाजी चेत्यष्टमूर्तयः ॥
इति यादवः॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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कै | ला | स | गौ | रं | वृ | ष | मा | रु | रु | क्षोः |
पा | दा | र्प | णा | नु | ग्र | ह | पू | त | पृ | ष्ठम् |
अ | वे | हि | मां | किं | क | र | म | ष्ट | मू | र्तेः |
कु | म्भो | द | रं | ना | म | नि | कु | म्भ | मि | त्रम् |