सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
अलमिति॥ हे महीपाल! तव श्रमेणालम्, साध्याभावाच्छ्रमो न कर्तव्य इत्यर्थः। अत्र गम्यमानसाधनक्रियापेक्षया श्रमस्य करणत्वात्तृतीया। उक्तं च न्यासोद्द्योते-न केवलं श्रूयमाणैव क्रिया निमित्तं करणभावस्य । अपि तर्हि गम्यमानापि
इति। अलं भूषणपर्याप्तिशक्तिवारणवाचकम्
इत्यमरः (अमरकोशः ३.३.२६७ ) । इतोऽस्मिन्मयि। सार्वविभक्तिकस्तसिः। प्रयुक्तमप्यस्त्त्रं वृथा स्यात्। तथा हि-पादपोन्मूलने शक्तिर्यस्य तत्तथोक्तं मारुतस्य रंहो वेगः शिलोञ्चये पर्वते न मूर्च्छति न प्रसरति ॥
छन्दः
उपेन्द्रवज्रा [११: जतजगग]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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अ | लं | म | ही | पा | ल | त | व | श्र | मे | ण |
प्र | यु | क्त | म | प्य | स्त्र | मि | तो | वृ | था | स्यात् |
न | पा | द | णे | न्मू | ल | न | श | क्ति | रं | हः |
शि | लो | ञ्च | ये | मू | र्च्छ | ति | मा | रु | त | स्य |
ज | त | ज | ग | ग |