सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
वामेति॥ प्रहर्तुस्तस्य वामेतरो दक्षिणः करः। नखप्रभाभिर्भूषितानि विच्छुरितानि कङ्कस्य पक्षिविशेषस्य पत्राणि यस्य तस्मिन्। कङ्कः पक्षिविशेषे स्याद्गुप्ताकारे युधिष्टिरे
इति विश्वः। कङ्कस्तु कर्कटः
इति यादवः। सायकस्य पुङ्ख एव कर्तर्याख्ये मूलप्रदेशे। कर्तरी पुङ्खे
इति यादवः। सक्ताङ्गुलिः सन्। चित्रार्पितारम्भश्चित्रलिखितशरोद्धरणोद्योग इव। अवतस्थे ॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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वा | मे | त | र | स्त | स्य | क | रः | प्र | ह | र्तु |
र्न | ख | प्र | भा | भू | षि | त | क | ङ्क | प | त्रे |
स | क्ता | ङ्गु | लिः | सा | य | क | पु | ङ्ख | ए | व |
चि | त्रा | र्पि | ता | र | म्भ | इ | वा | व | त | स्थे |