कृताभिषेका महिषी
इत्यमरः (अमरकोशः २.६.५ ) । व्रतं धारयतः। महनीया पूज्या कीर्तिर्यस्य तस्य दीनानामुद्धरणं दैन्दविमोचनम्। तत्रोचितस्य परिचितस्य तस्य नृपस्य। त्रयो गुणा आवृत्तयो येषां तानि त्रिगुणानि त्रिरावृत्तानि सप्त दिनान्येकविंशतिदिनानि व्यतीयुः ॥
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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इ | त्थं | व्र | तं | धा | र | य | तः | प्र | जा | र्थं |
स | मं | म | हि | ण्या | म | ह | नी | य | की | र्तेः |
स | प्त | व्य | ती | यु | स्त्त्रि | गु | णा | नि | त | स्य |
दि | ना | नि | दी | नो | द्ध | र | णो | चि | त | स्य |