सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
वत्सोत्सुकेति॥ सा धेनुर्वत्सोत्सुकापि वत्स उत्कण्ठितापि स्तिमिता निश्चला सती सपर्यां पूजां प्रत्यग्रहीदिति होतः, तौ दंपती ननन्दतुः। पूजास्वाकारस्यानन्दहेतुत्वमाह-भक्त्येति। पूज्येष्वनुरागो भक्तिः। तयोपपन्नेषु युक्त्वेषु विषये तद्विधानाम्। तस्या धेन्वा विधेव विधा प्रकारो येषां तेषाम्। महतामित्यर्थः। प्रसादस्य चिह्नानि लिङ्गानि पूजास्वीकारादीनि पुरःफलानि। पुरोगतानि प्रत्यासन्नानि फलानि येषां तानि हि। अविलम्बितफलसूचकलिङ्गदशनादानन्दो युज्यत इत्यर्थः॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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व | त्सो | त्सु | का | पि | स्ति | मि | ता | स | प | र्यां |
प्र | त्य | ग्र | ही | त्से | ति | न | न | न्द | तु | स्तौ |
भ | क्त्यो | प | प | न्ने | षु | हि | त | द्वि | धा | नां |
प्र | सा | द | चि | ह्ना | नि | पु | रः | फ | ला | नि |