सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
वसिष्ठेति॥ वसिष्ठधेनुयायिनमनुचरं वनान्तादावर्तमानं प्रत्यागतं तं दिलीपं वनिता सुदक्षिणा निमेषेष्वलसा मन्दा पक्ष्मणां पङ्क्तिर्यस्याः सा। अनिमेषा सतीत्यर्थः, लोचनाभ्यां करणाभ्याम्। उपोषिताभ्यामिव। उपवासो भोजननिवृत्तिः। तद्विद्भ्यामिव। वसतेः कर्तरि क्तः। पपौ। यथोपोषितोऽतितृष्णया जलमधिकं पिबति तद्वदतितृष्णयाधिकं व्यलोकयदित्यर्थः ॥
छन्दः
उपजातिः [११]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
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व | सि | ष्ठ | धे | नो | र | नु | या | यि | नं | त |
मा | व | र्त | मा | नं | व | नि | ता | व | ना | न्तात् |
प | पौ | नि | मे | षा | ल | स | प | क्ष्म | प | ङ्क्ति |
रु | पो | षि | ता | भ्या | मि | व | लो | च | ना | भ्याम् |