गृष्टिः सकृत्प्रसूता गौः
इति हलायुधः। नरेन्द्रश्च। उभौ यथाक्रमम्। आपीनमूधः। ऊधस्तु क्लीबमापीनम्
इत्यमरः (अमरकोशः २.९.७४ ) । आपीनस्य भारोद्वहने प्रयत्नात् प्रयासात् वपुषो गुरुत्वादाधिक्याञ्च। अञ्चिताभ्यां चारुभ्यां गताभ्यां गमनाभ्यां तपोवनादावृत्तेः पन्थास्तं तपोवनावृत्तिपथम्। ऋक्पूः-
(अष्टाध्यायी ५.४.७४ ) इत्यादिना समासान्तोऽप्रत्ययः। अलंचक्रतुर्भूषितवन्तौ ॥
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ | ९ | १० | ११ |
---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|---|
आ | पी | न | भा | रो | द्व | ह | न | प्र | य | त्ना |
द्धृ | ष्टि | र्गु | रु | त्वा | द्व | पु | षो | न | रे | न्द्रः |
उ | भा | व | लं | च | क्र | तु | र | ञ्चि | ता | भ्यां |
त | पो | व | ना | वृ | त्ति | प | थं | ग | ता | भ्याम् |