अन्वगन्वक्षमनुगेऽनुपदं क्लीबमव्ययम्
इत्यमरः (अमरकोशः ३.१.७७ ) । सतां मतेन सिद्धिर्मान्येन। गतिबुद्धि-
(अष्टाध्यायी १.४.५२ ) इत्यादिना वर्तमाने क्तः। क्तस्य च वर्तमाने
(अष्टाध्यायी २.३.६७ ) इति षष्ठी। तेन राज्ञोपपन्ना युक्ता सा धेनुः। सतां मतेन विधिनाऽनुष्ठानेनोपपन्ना युक्ता साक्षात् प्रत्यक्षा श्रद्धाऽऽस्तिक्यबुद्धिरिव। बभौ च ॥
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तां | दे | व | ता | पि | त्र | ति | थि | क्रि | या | र्था |
म | न्व | ग्य | यौ | म | ध्य | म | लो | क | पा | लः |
ब | भौ | च | सा | म | ते | न | स | तां | ते | न |
श्र | द्धे | व | सा | क्षा | द्वि | धि | नो | प | प | न्ना |