दवदावौ वनानले
इति हैमः। शशाम। फलानां पुष्पाणां च वृद्धिः। विशेष्यत इति विशेषा। अतिशयिताऽऽसीत्। कर्मार्थे धञ्प्रत्ययः। सत्त्वेषु जन्तुषु मध्ये। यतश्च निर्धारणम्
(अष्टाध्यायी २.३.४१ ) इति सप्तमी। अधिकः प्रबलो व्याघ्रादिरूनं दुर्बलं हरिणादिकं न बबाधे ॥
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श | शा | म | वृ | ष्ट्या | पि | वि | ना | द | वा | ग्नि |
रा | सी | द्वि | शे | षो | फ | ल | पु | ष्प | वृ | द्धिः |
ऊ | नं | न | स | त्त्वे | ष्व | धि | को | ब | बा | धे |
त | स्मि | न्व | नं | गो | प्त | रि | गा | ह | मा | ने |