वेणवः कीचकास्ते स्युर्ये स्वनन्त्यनिलोद्धताः
इत्यमरः (अमरकोशः २.४.१६१ ) । वंशः सुषिरवाद्यावशेषः। वंशादिकं तु सुषिरम्
इत्यमरः (अमरकोशः २.४.१६१ ) । आपादितं संपादितं वंशस्य कृत्यं कार्यं यस्मिन्कर्मणि तत्तथा। कुञ्जेषु लतागृहेषु। निकुञ्जकुञ्जौ वा क्लिबे लतादिपिहितोदरे
इत्यमरः (अमरकोशः २.४.१६१ ) । वनदेवताभिरुद्गीयमानमुञ्चैर्गीयमानं स्वं यशः शुश्राव श्रुतवान्॥
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स | की | च | कै | र्मा | रु | त | पू | र्ण | र | न्ध्रैः |
कू | ज | द्भि | रा | पा | दि | त | वं | श | कृ | त्यम् |
शु | श्रा | व | कु | ञ्जे | षु | य | शः | स्व | मु | ञ्चै |
रु | द्गी | य | मा | नं | व | न | दे | व | ता | भिः |