नित्यवीप्सयोः
(अष्टाध्यायी ८.१.४ ) इति वीप्सया द्विरुक्तिः। अवस्थामक्षोभाद्यवस्थाम्। विष्णुपक्षे, -सत्त्वाद्यवस्थाम्। प्रतिपद्यमानं भजमानं महिम्ना दश दिशो व्याप्य स्थितं विष्णोरिवास्य रत्नाकरस्य रूपं स्वरूपमुक्तरीत्या बहुप्रकारत्वाद्व्यापकत्वाञ्चेदृक्तया, इयत्तया वा प्रकारतः परिमाणतश्चानवधारणीयं दुर्निरूपम् ॥
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तां | ता | म | व | स्थां | प्र | ति | प | द्य | मा | नं |
स्थि | तं | द | श | व्या | प्य | दि | शो | म | हि | म्ना |
वि | ष्णो | रि | वा | स्या | न | व | धा | र | णी | य |
मी | दृ | क्त | या | रू | प | मि | य | त्त | या | वा |