तद्धितार्थ-
(अष्टाध्यायी २.१.५१ ) इत्यादिनोत्तरपदसमासः। तस्या वीचीनां विमर्देन संपर्केण शीतोऽसावाकाशवायुर्दिनयौवनोत्थान्मध्याह्नसंभवांस्ते मुखे स्वेदलवानाचामति हरति। अनेन सुरपथसंचारो दर्शितः ॥
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अ | सौ | म | हे | न्द्र | द्वि | प | दा | न | ग | न्धि |
स्त्रि | मा | र्ग | गा | वी | चि | वि | म | र्द | शी | तः |
आ | का | श | वा | यु | र्दि | न | यौ | व | नो | त्था |
ना | चा | म | ति | स्वे | द | ल | वा | न्मु | खे | ते |