छाया बाहुल्ये
(अष्टाध्यायी २.४.२२ ) इति क्लीबत्वम्। तस्मिन्। अप्रबोधायापुनर्बोधाय सुष्वाप। ममारेत्यर्थः। अत्र सुरतश्रान्तकान्तासमाधिर्धअवन्यते ॥
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सा | बा | ण | व | र्षि | णं | रा | मं |
यो | ध | यि | त्वा | सु | र | द्वि | षाम् |
अ | प्र | बो | धा | य | सु | ष्वा | प |
गृ | ध्र | च्छा | ये | व | रू | थि | नी |