पूर्वपदात्संज्ञायाम्-
(अष्टाध्यायी ८.४.३ ) इति णत्वम्। नखमुखात्संज्ञायाम्
इति ङीप्प्रतिषेधः। सैव रावणं प्रति राघवास्त्रैर्विदीर्णानां हतानां तेषां रक्षसां खरीदीनां दुष्प्रवृत्तिं वार्तां हरति प्रापयतीति दुष्प्रवृत्तिहराऽभवत्। हरतेरनुद्यमनेऽच्
(अष्टाध्यायी ३.२.९ ) इत्यच्प्रत्ययः ॥
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रा | घ | वा | स्त्र | वि | दी | र्णा | नां |
रा | व | णं | प्र | ति | र | क्ष | साम् |
ते | षां | शू | र्प | ण | खै | वै | का |
दु | ष्प्र | वृ | त्ति | ह | रा | ऽभ | वत् |