कबन्धोऽस्त्रीक्रियायुक्तमपमूर्धकलेवरम्
इत्यमरः। अन्यञअचान्यत्किंचन न ददृशे। कबन्धेभअय
इत्यत्र अन्यारात्-
(अष्टाध्यायी २.३.२९ ) इति पञ्चमी। निःशेषं हतमित्यर्थः॥
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त | स्मि | न्रा | म | श | रो | त्कृ | त्ते | |
ब | ले | म | ह | ति | र | क्ष | साम् | |
उ | त्थ | इ | तं | द | दृ | शे | ऽन्य | |
ञ्च | क | ब | न्धे | भ्यो | न | किं | च | न |