सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
सेति॥ सा शूर्पणखा सीतासंनिधावेव कथितान्वया कथितस्ववंशा सती तं रामं वव्रे वृतवती। तथा हि-अत्यारूढोऽतिप्रवृद्धो नारीणां मनोभवः कामः कालज्ञोऽवसरज्ञो न भवतीत्यकालज्ञो हि ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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सा | सी | ता | सं | नि | धा | वे | व |
तं | व | व्रे | क | थि | ता | न्व | या |
अ | त्या | रू | ढो | हि | ना | री | णा |
म | का | ल | ज्ञो | म | नो | भ | वः |