तद्धितार्थ-
(अष्टाध्यायी २.१.५१ ) इति तत्पुरुषः । संख्यापूर्वो द्विगोः
(अष्टाध्यायी २.१.२२ ) इति द्विगुसंज्ञायाम् द्विगोः
(अष्टाध्यायी ४.१.२१ ) इति ङीप्। द्विगुरेकवचनम्
(अष्टाध्यायी २.४.१ ) इत्येकवचनम्। तस्यां पञ्चवट्याम्। विन्ध्याद्रिः प्रकृतौ वृद्धेः पूर्वावस्थायामिव। अनपोढस्थितिरनतिक्रान्तमर्यादस्तस्थौ ॥
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
---|---|---|---|---|---|---|---|
प | ञ्च | व | ट्यां | त | तो | रा | मः |
शा | स | ना | त्कु | म्भ | ज | न्म | नः |
अ | न | पो | ढ | स्थि | ति | स्त | स्थौ |
वि | न्ध्या | द्रिः | प्र | कृ | ता | वि | व |