सञ्जीविनीटीका (मल्लिनाथः)
राम इति॥ रामस्त्वासन्नदेशत्वाद्धेतोः पुनर्भरतागमनमाशङ्क्योत्सुकसारङ्गामुत्कण्ठितहरिणां चित्रकूटस्थलीं जहौ तत्याज। आसन्नश्चासौ देशश्चेति विग्रहः ॥
छन्दः
अनुष्टुप् [८]
छन्दोविश्लेषणम्
१ | २ | ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | ८ |
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रा | म | स्त्वा | स | न्न | दे | श | त्वा |
द्भ | र | ता | ग | म | नं | पु | नः |
आ | श | ङ्क्यो | त्सु | क | सा | र | ङ्गां |
चि | त्र | कू | ट | स्थ | लीं | ज | हौ |