पथ्यतिथिवसतिस्वपतेर्ढञ्
(अष्टाध्यायी ४.४.१०४ ) इति ढञ्प्रत्ययः। तेषु। ऋषिकुलेष्वृष्याश्रमेषु। कुलं कुल्ये गणे देहे गेहे जनपदेऽन्वये
इति हैमः। वर्षासु भवानि वार्षिकाणि। वर्षाभ्यष्ठक्
(अष्टाध्यायी ४.३.१८ ) इति ठक्प्रत्ययः। तेषु। ऋक्षेषु नक्षत्रेषु राशिषु वा भास्कर इव वसन् दक्षिणां दिशं प्रययौ ॥
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प्र | य | या | वा | ति | थे | ये | षु |
व | स | न्नृ | षि | कु | ले | षु | सः |
द | क्षि | णां | दि | श | मृ | क्षे | षु |
वा | र्षि | के | ष्वि | व | भा | स्क | रः |